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अ॒ग्निः स॑नोति वी॒र्या॑णि वि॒द्वान्त्स॒नोति॒ वाज॑म॒मृता॑य॒ भूष॑न्। स नो॑ दे॒वाँ एह व॑हा पुरुक्षो॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniḥ sanoti vīryāṇi vidvān sanoti vājam amṛtāya bhūṣan | sa no devām̐ eha vahā purukṣo ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। स॒नो॒ति॒। वी॒र्या॑णि। वि॒द्वान्। स॒नोति॑। वाज॑म्। अ॒मृता॑य। भूष॑न्। सः। नः॒। दे॒वान्। आ। इ॒ह। व॒ह॒। पु॒रु॒क्षो॒ इति॑ पुरुऽक्षो॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:25» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरुक्षो) अतिशय अन्न आदि से युक्त जो (विद्वान्) विद्यावान् पुरुष ! आप जैसे (अग्निः) अग्नि के सदृश (वीर्य्याणि) पराक्रमों का (सनोति) धारण करनेवाले वैसे (सः) वह (अमृताय) नाशरहित मोक्षसुख की प्राप्ति के लिये (नः) हम (देवान्) विद्वानों को (इह) इस संसार में (भूषन्) शोभित करते हुए (वाजम्) विज्ञान को (सनोति) देता है, उन प्रकाशित करनेवाले पुरुष को हम लोगों के लिये (आ) (वह) अच्छे प्रकार प्राप्त करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य आकारवाले पदार्थों को उत्तम प्रकार शोभित करता है, वैसे ही विद्वान् लोग विद्या उत्तम शिक्षा और सभ्यता से संपूर्ण मनुष्यों को शोभित करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे पुरुक्षो यो विद्वान् भवान् यथाग्निर्वीर्य्याणि सनोति तथा सोऽमृताय नोऽस्मान्देवानिह भूषन्वाजं सनोति तानस्मानावह ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) पावक इव (सनोति) विभजति (वीर्य्याणि) बलानि (विद्वान्) (सनोति) ददाति (वाजम्) विज्ञानम् (अमृताय) मोक्षस्याऽविनाशसुखप्राप्तये (भूषन्) (सः) (नः) अस्मान् (देवान्) (आ) समन्तात् (इह) अस्मिन्संसारे (वह) प्रापय (पुरुक्षो) पुरूणि क्षुधोऽन्नादीनि यस्य तत्संबुद्धौ। क्षुदित्यन्ननाम। निघं० २। ७ ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यो मूर्तान्पदार्थान्सुभूषयति तथैव विद्वांसो विद्यासुशिक्षासभ्यताभिः सर्वान्मनुष्यान् सुभूषयेयुः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आकारयुक्त पदार्थांना उत्तम प्रकारे सुशोभित करतो, तसेच विद्वान लोकांनी विद्या व सुशिक्षण, सभ्यता यांनी सर्व माणसांना शोभायमान करावे. ॥ २ ॥